Monday, March 27, 2023

मुझे एहसास हुआ कि चुप रहना है कितना मुश्किल

सभी साथियों ने वापस से ‘लड़का कौन-लड़की कौन’ कहानी पढ़ी, जिसे कमला भसीन ने लिखा है। हमने जेन्डर के सेशन में बार-बार कमला भसीन की लेखनी का इस्तेमाल किया है। वो चाहें उनकी लिखी कहानियां 'सतरंगी लड़कियां' हो या उनके स्वर में बोली गई कविताएं 'मुझे पढ़ना है,' हर बार वो आपको सोचने के लिए जैसे न्योता देती हैं।

इसका असर एडु-लीडर्स के छोटे-छोटे समूह में भी दिखा, जहां सभी मानों सभी गहरे उतर कर खुद को, परिवार को और समाज को वापस से समझने की कोशिश में जुटी थी, जिस समूह का मैं हिस्सा बना वहां यह बिल्कुल स्पष्ट दिख रहा था। राखी ने अपने विद्यालय का परिचय दिया कि कैसे "मेरे स्कूल में पहले लड़का और लड़की अलग-अलग बैठते थे। मैंने प्रिन्सपल सर से बात कि और बताया कि सर मुझे इस तरीके को बदलना है और आज यह हो पा रहा है।"

खेल में भी भेदभाव 

रोजी ने भी अपने अनुभव में इस भिन्नता को सामने रखा और एक घटना साझा कि "खेलने के समय जब लड़कियों ने कैरम बोर्ड पर खेलने से मना कर दिया क्योंकि वहां लड़के पहले से खेल रहे थे। मैंने कहा चलो उनके साथ ही खेलते हैं, तो सबने शुरुआत में तो मना कर दिया मगर जब मैंने कहा कि मैं भी चलूंगी तो सब तैयार हो गई।"   


निकिता ने बहुत विश्वास से कहा, "मैं अपने गांव की अकेली लड़की हूं, जो घर से बाहर निकल कर सारा काम करती है और आज गाँव के भी बहुत सारे लोग अपना काम करवाने के लिए मेरे पास आते हैं।" एक और सुखद अनुभव रहा। दो साथियों के एक ही विषय पर अलग-अलग विचार को देखकर आया। यह विश्वास और गहरा हुआ कि हम मिलकर एक ही विषय पर अलग-अलग सोच रखने और इसे सामने लाने का माहौल बना पा रहे हैं।

 

क्षमता का अभाव नहीं 


एजेंसी पर निभा दी ने कहा, "मैं बोलती कम हूं मगर मुझे पूरा विश्वास है कि मैं अपने जीवन के लक्ष्यों को पा सकूंगी।" वहीं किसी ने इतिहास विषय तो किसी ने घर से निकल कर आज सेशन में शामिल होने की बात को अपने एजेंसी से जोड़ी। मेरी बारी आई कि एजेंसी की और पांच साथी अपने सफर की शुरुआत को एक साथ शुरू किए। 


कुछ समय में ही धर्म, जाति, शिक्षा, काम, परिवार, आय, स्थान और दूसरे अन्य कारणों ने कुछ साथियों को बहुत आगे तो कुछ साथियों को बहुत पीछे खड़ा कर दिया। मन में खयाल आया ये यही तो आस-पास हो रहा है। क्षमता का अभाव नहीं है बल्कि इस क्षमता को प्रदर्शित करने के मौके कम है। 


और मुझे बोलना पड़ा


साथ ही एक अवलोकन स्वयं को लेकर भी हुआ। आज जब सेशन में बैठा तो मन में यह ख्याल था कि आज मैं केवल सुनूंगा, कुछ बोलूंगा नहीं चाहे कुछ भी हो। कुछ समय तक मैं यह करता भी रहा। मन में जब भी ख्याल आते कि कुछ बोलूं तो एक बार स्वयं को समझाता "नहीं आज चुप रहना है।" मगर बहुत देर तक यह हो नहीं सका। 


एजेंसी की बात आई और मैं वापस से बोलने लगा। कुछ ऐसा जिसके लिए मैं अपने आपको लगातार मना कर रहा था। एजेंसी का विषय है, तो इसी से जोड़ना सही होगा और मुझे वाकई लगता है कि मैं यह कर फसिलटैटर की एजेंसी को प्रभावित करता हूं और इससे बचना चाहिए। मेरे लिए आगे बढ़ने को लेकर अगली बार यही एक सीख होगी और आशा होगी कि मैं बेहतर कर पाऊं।



श्रवण ने अपने दो दोस्तों के साथ वर्ष 2015 में i-Saksham संस्था की शुरुआत की । यह वर्ष 2016 के Acumen फ़ेलो और वर्ष 2012-15 तक प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो रहे हैं , जहां इन्होंने जमुई (बिहार) मे जिला प्रशासन के साथ मिलकर विभिन्न योजनाओं मे अपना योगदान दिया है । इससे पहले इन्होंने 4 साल विभिन्न स्तर पर microfinance संस्थानों मे कार्य किया है ।  इन्होंने Symbiosis Institute of International Business से स्नातकोत्तरऔर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कृषि विषय मे स्नातक की पढ़ाई की है ।

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