प्रीति कुमारी ने बच्चियों के नामांकन के दौरान अपने अनुभव को साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि नामांकन को लेकर ना केवल अभिभावक बल्कि हेडमास्टर्स का भी रवैया कभी-कभार काफी मुश्किल और मशक्कत में डाल देता है। इन सब चुनौतियों के पार उन्हें केवल बच्चियों का चेहरा दिखाई पड़ता है, जो बैग टांगे स्कूल जा रही हैं और यही चीजें उन्हें प्रेरणा देती है। वे लिखती हैं-
"मैं सैफगंज, फरबिसगंज ब्लॉक अररिया में नामांकन के लिए गई तो वहां पर बहुत ही मुश्किल आ रही थी। पहले हेडमास्टर नहीं मान रहे थे फिर अभिभावक नहीं मान रहे थे, जब हमलोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में जानकारी दी, तब उन्हें हमारी बात समझ आई। उसके बाद वे नामांकन के लिए तैयार हुए।
सबसे ज्यादा मुश्किल यह था कि वहां अधिकांश बच्चियों का कोई डोक्युमेंट नहीं था। केवल 10 बच्चियों के ही डोक्युमेंट्स मिले, जिससे केवल उनका ही नामांकन हो सका। इसका मतलब यही है कि अभिभावक अपनी बेटियों के कागजातों को भी सही से नहीं रख पा रहे थे। शायद इसके पीछे की वजह लड़कियों को लेकर जागरुकता और उदासीनता ही एक कारण है।
हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि आप अच्छा काम रही हैं, तो मुझमें थोड़ी आशा का संचार हुआ। साथ ही मैंने हेडमास्टर से भी बात किया और उन्हें बच्चियों के डोक्युमेंट्स को सही तरीके से रखने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद हेडमास्टर ने मुझे लिखित में आश्वासन दिया कि वे बच्चियों के जमा किए डोक्युमेंट्स को सही से रखेंगे।"
देखा जाए, तो यह कार्य हर रोज चुनौतियों से भरा हुआ होता है लेकिन क्या किया जाए अगर दिल में शोला हो, और वह शोला बार-बार कहे कि एक भी बच्ची को शिक्षा से वंचित नहीं रखना है। हर कोमल हाथों में कलम हो, हर बच्ची के कंधे पर बैग हो ना कि उनके कोमल कंधे पर जिम्मेदारी या जलावन का भार हो। मैं रोज मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची शिक्षित हो सके।
चट्टानों से हौसले हमारे,
आसमान से ऊंचे इरादे,
बच्चियों को शिक्षा की महिमा दिखाकर,
मुसीबतों में दम नहीं की मुझे हरा दे।
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