मेरा नाम राहुल कुमार है। मैं मुंगेर जिला (गांव- पचरुखी) से हूं। मैं आज आप सभी के सामने एक छोटा सा अनुभव साझा कर रहा हूं। मैं आज प्राथमिक विद्यालय दशरथी गया था। मैं वहां बतौर सहयोगी था, जहां बच्चे का बेसलाइन टेस्ट लिया जा रहा था और मेरे लिए सबसे खुशी की बात थी कि मैं पहली बार प्राथमिक विद्यालय गया था और एडुलीडर प्रियंका दीदी और नाजिया दीदी के सहयोग में गया था।
जाने के बाद मुझे बहुत खुशी हो रही थी। वहां की मैम बहुत अच्छी थी। जब वहां टेस्ट शुरू हुआ तो मुझे टेस्ट कॉपी बच्चों को देने के लिए बोला गया। मैंने सभी बच्चों को कॉपियां दी। नाजिया दीदी मुझे बच्चों का मौखिक टेस्ट लेने भी बोली, उस समय मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने बच्चों का टेस्ट लिया।
कविता सुनाने का सीखा नया तरीका
टेस्ट लेते समय मुझे इतना मजा आ रहा था। बच्चों ने अपनी मनपसंद कविताएं सुनाई, वो भी एक्शन के साथ। यह मेरे लिए एकदम नया था। कविता सुनाने का भी एक ऐसा नया और अद्भुत तरीका हो सकता है, ये मुझे सीखने को मिला। इसमें सबसे खास बात थी कि मेरे लिए वो मेरा अनुभव था।
कविता सुनना, बच्चों का टेस्ट लेने का अनुभव मैं पहली बार कर रहा था। मैंने महसूस किया कि वाकई शिक्षक बनना एक गर्व की बात है। अंततः सारा काम सफलता पूर्वक हुआ। सारे बच्चों ने बहुत सारा प्यार दिया। सभी ने मुझे बाय कहा। इसके बाद मैं वहां से घर चला आया। मेरी कामना है मुझे यह मौका फिर मिले।
एक एडुलीडर की मेहनत और उनके कामों का ऐसा विशलेष्ण वाकई अच्छी बात है। हम हमेशा समाज में बदलावों की बात करते हैं लेकिन हमें अपने अंदर के बदलावों और विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। बच्चों के अंदर असीम संभावनाएं होती हैं, जिसे तराशना और निखारना स्वयं में एक हूनर है। यह हूनर एक शिक्षक के पास होता है, जो एक पौधे को सींचकर उसे फलदार बनाता है।
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