Wednesday, February 1, 2023

ऑनलाइन सेशन पर तानिया की समझ


दोस्तों 20 जनवरी 2023 को हमने जेंडर पर आधारित तीसरा सेशन किया। हमेशा की तरह सेशन की शुरुआत बेहतरीन और ऊर्जावान तरीके से हुई। सेशन की शुरुआत एक कविता के साथ हुई, जिसका शीर्षक था, 'मुझे कब तक रोकोगे.' कविता की इन पंक्तियों को सुनना हम सबके लिए काफी प्रोत्साहित करने वाला था, जिससे हम सबने अंदर सकारात्मकता और आशआ की एक नई किरण को महसूस किया, मानो एक चेतना का विकास हो रहा हो।

साथ ही सेशन में मौदूद हर एक शख्स एवं एडुलीडर भी स्वयं को भावनात्मक तरीके से जड़ पा रहे थे। किसी के अंदर पूराने ख्यालों का पुलिंदा चल पड़ा था, तो किसी के अंदर समाज द्वारा दिए गए तानों का जनसैलाब उमड़ आया था। जब समाज से मिल रहे ताने और समुद्र की गहराई की बात हो रही थी और कहीं न कहीं मैं भी इसी लाइन से खुद को जोड़ पा रही थी। उस समय जब एडुलीडर्स ने भी इस लाइन से संबंध महसूस किया तो मुझे एक बात समझ आई कि केवल लड़कियों के साथ ही नहीं बल्कि लड़कों के साथ भी भेदभाव होता है या उनके सपनों को कुचला जाता है मगर एक लड़की होने के नाते मैं एक लड़की के नजरिए ये सोच पा रही थी। मैं सोच सकी कि जब एक लड़की अपने घर से बाहर निकलती है, तो ये कई बार यह निश्चित होता है कि न जाने कितने तानें, रुकावट और चुनौतियों को चीरते हुए वो यहां तक पहुंची है।   

सतरंगी लड़कियां, लड़कियों का स्वभाव 

सेशन में एक वीडियो भी चलाया गया, जिसका नाम 'सतरंगी लड़कियां' था। इस वीडियो को देखने के बाद एडुलीडर्स ने बताया कि उन सबका स्वभाव कैसा है? जैसे- किसी ने कहा कि मैं तो शर्मीली हूं, तो निभा दीदी ने कहा कि मैं शांत हूं फिर दुलारी ने तीन-चार एडुलीडर के बारे में बताया कि वे शांत स्वभाव की हैं, कुछ सजने संवरने वाली हैं, तो कुछ चंचल स्वभाव की लड़कियां भी हैं। काजल दीदी ने कहा कि उन्हें सिंपल रहना पसंद है। अंत में यह भी निकलकर सामने आया कि लड़कियां तो किसी भी तरह की हो सकती हैं। उन्हें केवल एक बंधन ा एक स्वभाव में बांधना नामुमकिन है। 

समाज ने ही भावना बना दी है कि लड़की है, तो ऐसी ही रहेगी मगर ऐसा हरगिज नहीं है क्योंकि हर एक व्यक्ति स्वयं में विशिष्ठ और भिन्न है।  हमने एडुलीडर्स को सोचने के लिए कहा कि क्या ऐसा काम है, जो फेलोशिप से पहले आपको लगता था कि आप नहीं कर पाएंगे। डैसे- परिवार या समाज द्वारा कोई बंदिश हो लेकिन अब आप कर पा रहे हैं और अपने शर्तों पर जी पा रहे हैं। इस प्रश्न के बाद ऐसी कई बातें सामने आईं, जैसे- अपने निर्णय खुद लेना, बाहर अकेले जाना, समाज के लोगों से मिलना और आत्मविश्वास के साथ बातें करना और अपने मनपसंद कपड़े पहनना इत्यादि।  

उसके बाद हमने पिछले सेशन से जोड़ कर सोचा कि क्या ऐसा चीज है, जो हम बिल्कुल भी नहीं बदल सकते मगर हम बदलना चाहते हैं। इसमें यह निकलकर सामने आया, जिससे सुनकर आपको भी काफी हैरानी होगी। प्रेरणा दीदी ने कहा, मैं अपने दोस्त के साथ रहकर पढ़ना चाहती हूं मगर ये होगा नहीं। इस पर मैंने कहा, "इसे पाने के लिए आप क्या कर सकती हैं और किसकी मदद चाहिए?" तो मेरे इस सवाल पर उन्होंने तुरंत अपनी योजना बता दी।  

ये गतिविधि करके मुझे भी एहसास हुआ कि इस दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है, जो हम नहीं बदल सकते। बस देर है, उस चीज को लेकर अपना 'नजरिया' बदलने की और उस सपने को पाने के लिए संघर्ष का रास्ता अपनाने की और महसूस करने कि भी जरुरत है कि आपके लिए किसी चीज का बदलना कितना महत्व रखता है और क्या सच में आप उसमें बदलाव चाहते है या नहीं। इसके बाद देखें कि आपकी एक कोशिश से आपका पूरी दूनिया बदल सकती है।

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