आज मैं आमस प्रखंड में मनझौलियां गांव के टोला धूपनगर में नामांकन के लिए गई थी लेकिन वहां मुझे अद्भुत दृश्य देखने को मिला क्योंकि मैंने गांव का परिदृश्य नहीं देखा था इसलिए गंवई अंदाज से अपरिचित थी। जैसे- वहां के लोग अपना जीवनयापन किस प्रकार करते हैं?
हालांकि गांव की स्थिति देखकर मुझे अफसोस हुआ क्योंकि वहां की स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, जैसा हम तस्वीरों में देखा करते हैं। सच बताऊं तो वहां जाने के बाद मुझे हकीकत का अंदाजा हुआ। जैसे- वहां कोई यातायात का साधन उपलब्ध नहीं था। चुंकि मुझे धूपनगर गांव तक पहुंचना था इसलिए मुझे बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। साथ ही उस गांव की दूरी भी बहुत है और दूरी के साथ- साथ उस धूपनगर गांव में जाने के लिए तीन पहाड़, भयानक जंगल पार करना पड़ता है।
पहाड़ और जंगलों ने रोका रास्ता
इस कारण उस गांव तक पहुंचने के लिए पहाड़ पर कैसे गाड़ी चढ़ सकतीं हैं, इसलिए हमलोगों ने 13 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही पूरी की, जिसमें पहाड़ और जंगल पार करके हम धूपनगर गांव पहुंचे। यह यात्रा काफी थका देने वाली थी लेकिन अपने निर्णय और अपनी प्रतिज्ञा के प्रति हम अडिग थे इसलिए पहुंचते ही हमने अभिभावकों से बातचीत करने का सिलसिला शुरू कर दिया और अभिभावकों को प्रेरित करने की कोशिश की कि वे अपने बच्चों को विद्यालय जरूर भेजें।
हमारे लिए ये बहुत खुशी की बात थी कि वे सारे अभिभावक तैयार हो गए कि वे अपने बच्चियों को पढ़ाएंगे लेकिन वे सभी पहाड़ी इलाका और घना जंगल होने के कारण बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे।
बच्चियों की सुरक्षा अभिभावकों की चिंता
साथ ही वहां विद्यालय तो है लेकिन पांचवीं कक्षा तक ही सीमित है इसलिए वहां के सभी बच्चे पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ पाते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि वे अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते या बच्चे पढ़ना नहीं चाहते मगर बुनियादी सुविधाएं ही नहीं है, जिस कारण चाहकर भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती।
अभिभावकों का कहना है कि अगर आप लोग नामांकन करवाना ही चाहते हैं, तो यहां जितनी भी पांच से सात बच्चियां हैं, उन सभी का नामांकन एक साथ कस्तूरबा में करवा दीजिए। ऐसे तो कोई नहीं विद्यालय जा सकती है।
मेरा मानना है कि इस स्थिति को देखते हुए विचार-विमर्श करने के बाद ही निर्णय लेने की जरुरत है इसलिए मैं किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। हालांकि विद्यालयों का होना बेहद जरुरी है क्योंकि शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षित होना हर बच्चे का अधिकार है इसलिए कुछ कदम बढ़ाने की जरुरत है ताकि बच्चियां शिक्षित हो सकें।
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