साथियों, आज मुझे जमालपुर में बैच 7 के सेशन का हिस्सा बनने का मौका मिला। सेशन का मुख्य उद्देश्य एजेंसी पर समझ बनाने को लेकर था। सेशन की शुरुआत अमल हुसैन नाम की एक बच्ची की तस्वीर से हुई, जिसे टाइम्स पत्रिका ने वर्ष 2022 के सर्वश्रेष्ठ तस्वीरों में से एक माना था।
अमल, सऊदी और यमन के युद्ध से प्रभावित एक लड़की है, जो पोषण की कमी से जूझ रही है। शरीर की सभी हड्डियां बाहर की ओर निकली हुई, कमजोर पतले हाथ, चेहरे का एक ओर झुका होना और उदास आँखों मे एक 7 वर्ष की बच्ची के सारे सपने खोने की निराशा भी साफ झलक रही थी। इस तस्वीर को दिखाते हुए कनक ने क्रमबद्ध रुप से कुछ प्रश्नों को सबसे पूछा- "इसे देख आपके मन के क्या मूल्य, खयाल और एक्शन लेने का विचार आता है?"
निकिता ने इसे अपनी बहन की तबीयत से जोड़ा तो वहीं रौशनी ने बताया कि कैसे "मैँ इसे अपने गाँव के आस-पास के बच्चों से जोड़ पा रही थी।"
सभी के मन में थे अनेकों भाव
सभी साथियों ने वापस से लड़का कौन-लड़की कौन कहानी पढ़ी, जिसे कमला भसीन ने लिखा है। हमने जेन्डर के सेशन में बार-बार कमला भसीन की लेखनी का इस्तेमाल किया है। वो चाहें उनकी लिखी कहानियां 'सतरंगी लड़कियां' हो या उनके स्वर में बोली गई कविताएं 'मुझे पढ़ना है,' हर बार वो आपको सोचने के लिए जैसे न्योता देती हैं।
इसका असर edu-leaders के छोटे-छोटे समूहों में भी दिखा, जहां सभी मानों उस पल में गहरे उतरकर खुद को, परिवार को और समाज को वापस में समझने की कोशिश में जुटी थी। जिस समूह का मैं हिस्सा बना वहां यह बिल्कुल स्पष्ट दिख रहा था कि सभी के मन में अनेकों भाव हैं।
राखी ने अपने विद्यालय का परिचय दिया कि कैसे "मेरे स्कूल में पहले लड़का और लड़की अलग-अलग बैठते थे, मैंने प्रिन्सपल सर से बात कि और बताया कि सर मुझे इस तरीके को बदलना है और आज यह हो पा रहा है कि लड़का-लड़की साथ पढ़ते हैं।"
अलग-अलग सोच आई सामने
रोजी ने भी अपने अनुभव में इस भिन्नता को सामने रखा और एक घटना साझा करते हुए कहा, "खेलने के समय जब लड़कियों ने कैरम बोर्ड पर खेलने से मना कर दिया क्योंकि वहां लड़के पहले से खेल रहे थे। ऐसे में मैंने कहा चलो उनके साथ ही खेलते हैं, तो सबने शुरुआत में तो मना कर दिया मगर जब मैंने कहा कि मैँ भी चलूंगी तो सब तैयार हो गई।"
निकिता ने बहुत विश्वास से कहा, "मैं अपने गाँव की अकेली लड़की हूँ, जो घर से बाहर निकलकर सारा काम करती है और आज गाँव के भी बहुत सारे लोग अपना काम करवाने के लिए मेरे पास आते हैं।"
एक और सुखद अनुभव दो साथियों के एक ही विषय पर अलग-अलग विचार को देखकर आया। साथ ही यह विश्वास गहरा हुआ कि हम मिलकर एक ही विषय पर अलग-अलग सोच रखने और इसे सामने लाने का माहौल बना पा रहे हैं।
जब साथियों ने साझा की अपनी यात्रा
एजेंसी पर निभा दी ने कहा, "मैं बोलती कम हूँ पर मुझे पूरा विश्वास है कि मैं अपने जीवन के लक्ष्यों को पा सकूंगी।" वहीं किसी ने इतिहास विषय तो किसी ने घर से निकल आज सेशन में शामिल होने की बात को अपने एजेंसी से जोड़ा। अब बारी आई एजेंसी वाल्क की और पाँच साथी अपने सफर की शुरुआत को एक साथ शुरू हुए।
कुछ समय में ही धर्म, जाति, शिक्षा, काम, परिवार, आय, स्थान और दूसरे अन्य कारणों ने कुछ साथियों को बहुत आगे तो कुछ साथियों को बहुत पीछे खड़ा कर दिया। मन में खयाल आया कि यह कितना सच है! यही तो आसपास हो रहा है। क्षमता का अभाव कहां है, पर इस क्षमता को प्रदर्शित करने के मौके कितने कम हैं।
एक अवलोकन स्वयं को लेकर भी हुआ। आज जब सेशन में बैठा तो मन में यह ख्याल था कि आज मैं केवल सुनूंगा और कुछ बोलूंगा नहीं, चाहे कुछ भी हो। कुछ समय तक मैं यह करता भी रहा। मन में जब भी खयाल आते कि कुछ बोलूं तो एक बार समझाता "नहीं, आज चुप रहना है।" लेकिन बहुत देर यह हो नहीं सका।
एजेंसी की बात आई और मैं वापस से बोलने लगा। कुछ ऐसा जिसके लिए मैं अपने आपको लगातार मना कर रहा था। एजेंसी का विषय है, तो इसी से जोड़ना सही होगा और मुझे वाकई लगता है कि मैं यह फसिलटैटर की एजेंसी को प्रभावित करता हूँ और इससे बचना चाहिए। मेरे लिए आगे बढ़ने को लेकर अगली बार यही एक सीख होगी और आशा होगी कि मैं बेहतर कर पाऊं।
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