Friday, February 10, 2023

जहां अभिभावकों के लिए बच्चियां हैं घरेलू काम करवाने का साधन लेकिन मेरी पहल से हुआ बदलाव


आज मैं (संजू कुमारी) एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं नामांकन के लिए हरिदासपुर, गया जिला के आमस प्रखंड के कलवन पंचायत गयी थी। जब मैं वहां गयी तो देखा कि वहां के लोग सभी ईंट-भट्टा का काम करते हैं और यही उनकी जीविका का साधन है। संभवत वहां के अधिकांश लोग असंगठित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी आय कभी निश्चित नहीं होती। हालांकि मैंने सोचा था कि बच्चे कम से कम पढ़ रहे होंगे लेकिन वहां देखा कि हकीकत बिल्कुल विपरीत थी। मैं जब वहां के बच्चों से मिली, तो मेरी उत्सुकता यह जानना थी कि वे लोग पढ़ाई को लेकर कितने उत्साहित हैं? जब उन बच्चों से बात हुई, तब सामने आया कि वे पढ़ना चाहते हैं। उन्होंने मुझसे कहा, "हां हम सब पढ़ने के लिए तैयार हैं मगर मम्मी पापा से बात किजिगा तब ही।" इसके बाद मैंने कहा, "ठीक है। मैं बात करूंगी।" इसके बाद मैंने पूछा कि आप लोग के मम्मी-पापा कब घर पर रहते हैं? मेरे इस सवाल पर उन बच्चों ने बताया, सोमवार को हफ्ता उठता है और उस दिन सब घर पर रहते हैं। यही कारण था कि अधिकांश लोग अपने घरों पर नहीं थे इसलिए मैंने उस दिन ही इंतजार करने का सोचा कि सबसे मिलकर ही जाउंगी। कोमल कंधों पर घर की जिम्मेदारी शाम को जब वे वापस आए, तो मैंने उनसे उनकी बच्चियों के नामांकन और पढ़ाई संबंधित सवाल किए और बातचीत करने की कोशिश की। जब मैंने उनसे कहा कि आप क्यों अपनी बेटियों का नामांकन नहीं कराते, तो मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, “अगर ये घर पर नहीं रहेगी, तो घर का काम कौन करेगा और अगर पढ़ने जाएगी, तो घर कौन देखेगा?” इसके बाद मैंने उन्हें सुझाव दिया कि खाना तो सवेरे 8 बजे ही बनता है ना, तो बच्चियों को स्कूल भेजने में क्या दिक्कत है और बात खाना बनाने की है, तो ये बेटियां सुबह खाना बना दिया करेंगी। मेरे इस सुझाव पर उन्होंने कुछ देर विचार-विमर्श किया और अंत में तैयार हो गए फिर मैंने उन बच्चियों का नामांकन पास के स्कूल में कराया। जहां मुझे पता चला कि नामांकन की स्थिति बहुत दयनीय है क्योंकि अभिभावकों जागरुक नहीं हैं और वे बच्चों से घर की रखवाली और घर का काम करवाते हैं। हालांकि मैंने अपना कर्तव्य पूरा करते हुए बच्चियों को नामांकन और पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उम्मीद है कि वे अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी। 



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