Friday, February 3, 2023

हमारी edu-leader सुनीता और उनके द्वारा लाए गए बदलाव की कहानी: तानिया परवीन

हम अक्सर देखते हैं कि पिछड़े इलाके के युवा और बच्चे काफी मुश्किलों का सामना करते हैं। उन्हें हर एक सुविधा प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। खासकर उन इलाकों में जहां अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या ज्यादा होती है। चुंकि इन इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है इसलिए वहां के बच्चे अगर पढ़ना भी चाहे या माता-पिता बेहतर शइक्षा दिलाना भी चाहें तो साधन की कमी उन्हें पीछे ले आती हैं लेकिन हम सब जानते हैं कि समाज के विकास के लिए हर तबके का आगे बढ़ना जरुरी है, तभी महात्मा गांधी का सपना पूरा होगा, जो उन्होंने भारत के नागरिकों के लिए देखा था।  


हमारे फ़ेलोशिप में कई ऐसी लड़कियां हैं, जो ऐसे ही इलाकों से आती हैं और फ़ेलोशिप प्रोग्राम से जुड़ती और सीखती हैं। वे जहां से आती हैं, उस इलाके के बच्चों के साथ भी हम उनके द्वारा जुड़ते हैं मगर कई बार हमने पाया हैं कि कुछ लड़कियां बीच में ही इसे छोड़ देती हैं। बच्चे भी स्कूल छोड़ देते हैं। मेरी भी दो edu-leaders इसी समुदाय से थी मगर वे फेलोशिप को पूरा नहीं कर पाई क्योंकि उनके सामने कई चुनौतियां होती हैं। जैसे- लड़कियों को कम आंकना, उन्हें समान अवसर ना मिल पाना इत्यादि।


इस बार भी बैच 5 में हमारे कई edu-leaders के साथ सुनीता भी आईं। वे भी फेलोशिप प्रोग्राम से जुड़ीं हैं और मैं इनकी buddy बनी। सुनीता महगामा पंचायत के छोटे से गांव जतिकुटिया की रहने वाली हैं। वे नजदीकी पंचायत बंगलवा से लगभग 2-3 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां लोग बंगलवा से पैदल ही आना-जाना करते हैं। सुनीता के गांव में न ही कोई आंगनवाड़ी है और न ही चिकित्सिय सुविधाएं। उनका इलाका चारों ओर से घने जंगल और पहाड़ों से घिरा है, जहां के लोगों की आजीविका खेती-मजदूरी पर ही निर्भर है। यहां सिर्फ एक मध्य विद्यालय है, जहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

अपनी गांव की पहली लड़की




सुनीता अपने गांव की पहली लड़की है, जो ग्रेजुएशन कर रहीं है। जब वे हमारे fellowship में आईं थीं, तो बहुत कम बोलती थीं। जब मैं उनसे बात करती तो वे कई बार चुप रह जातीं। जब हमारी ट्रेनिंग चलती थी और बालगीत गाने के लिए कहा जाता था, तो वे काफी शरमाती थीं। जब मैं पहली बार उनकी कक्षा में गई थी, तो वो गणित पढ़ाना चाह रहीं थीं लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे मैं कैसे पढ़ाएंगी इसलिए मैंने उनकी कक्षा ली। कई बार बच्चे भी पढ़ने नहीं आते थे। वे बच्चों को बार-बार बुलाने जाती थीं मगर बच्चे आते ही नहीं थे। कई बार मैंने इसपर बात की और हमारी टीम से वकील सर भी बच्चों के और उनके अभिभावकों से मिले।

मुझे भी लगता था कि पता नहीं ये सारे चुनौतियां जो वे देख रही है, कहीं ज्यादा न हो जाए। साथ ही जिस कारण बाकी लड़कियों ने इस सफर को आधे में ही छोड़ दिया था, मुझे डर था कि कहीं ये भी न छोड़ दें। एक दिन उन्होंने मुझे कॉल किया और कहा, "दीदी मैं फ़ेलोशिप नहीं करूंगी।" मैंने पूछा क्या हुआ है? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने उनसे फिर पूछा कि सुनीता आप ठीक हैं न? मुझे आपकी आवाज सही नहीं लग रही। शायद आपकी तबीयत ठीक नहीं है। उन्होंने जवाब दिया "हाँ दीदी बुखार है।" मैंने कहा, आज आप स्कूल मत जाइएगा और जब तक आपकी तबीयत ठीक न हो जाए आप आराम कीजिए। उन्होंने लगभग एक सप्ताह तक बच्चों को नहीं पढ़ाया और आराम किया। मैंने बस बीच-बीच में कॉल किया और उनकी तबीयत के बारे में पूछती रही।
 
जब वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गईं, तब मैंने पूछा, "बताइए अब क्या हुआ है?" इस पर उन्होंने अपने घर, समाज और स्वास्थ्य की समस्या बताई। हम दोनों ने काफी देर तक इसपर बात की फिर अंत में उन्हेंने कहा, "दीदी हम इससे काफी सीख रहे हैं और इसे हम नहीं छोड़ना चाहते।" मेरे लिए ये सुनना मेरी सबसे बड़ी उपाधि लग रही थी।
 
सुनीता ने सीखा बेबाक बोलना

उसके बाद सुनीता से मैंने उनके अलग-अलग चीजों पर बात की। आज सुनीता खुद कहती हैं कि मैं अब लोगों से बिना डरे बोल पाती हूं। मैंने इस एक साल में देखा है कि सुनीता काफी बेहतर तरीके से गतिविधि , TLMs का प्रयोग कर स्तरानुसार तीनों विषयों को पढ़ाती हैं और हमने पाया है कि सुनीता जिन बच्चों को पढ़ाती हैं, उनके सीखने की क्षमता में भी विकास हुआ है। जैसे- हिंदी में 12 बच्चे ऐसे हैं, जो प्रारंभिक में थे और वे अब शब्द और अक्षर पढ़ पाते हैं, अंग्रेजी में 11 बच्चे ऐसे हैं, जो प्रारंभिक में थे और अब अक्षर पढ़ पाते हैं। वहीं गणित में भी 9 बच्चे ऐसे हैं, जो प्रारंभिक स्तर पर थे लेकिन अब संख्या पहचान पाते हैं।
 
दिसंबर 2021 के महीने में जब मैं उनके मध्य विद्यालय जतिकुटिया गई थी, तो वहां के प्रधानाध्यापक कह रहे थे कि इस बच्ची के आने से मेरे विद्यालय में बच्चे बढ़ गए हैं। जहां पहले 10-12 बच्चे आते थे अब तो 25-30 बच्चा आ जाते हैं और कभी-कभी उससे ज्यादा भी।

सुनीता तो आगे बढ़ ही रही हैं मगर साथ में अपने समाज में रहने वाले युवा और बच्चे को भी आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। वो जिस तरह से आगे बढ़ रहीं  हैं, उनको देखकर और भी लड़कियां आगे पढ़ने और बढ़ने के लिए तैयारी कर रही हैं। ये सारी चीजें देखकर ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं ये हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। साथ ही यह इस विश्वास को भी मजबूत करता है कि अगर हम मेहनत करें तो समाज में बदलाव लाना मुश्किल नहीं है। 




तानिया परवीन, हमारी executive-buddy हैं। साथ ही हमारे पहले फेलोशिप बैच से स्नातक एडु-लीडर भी रही हैं। उन्होंने बेगूसराय, बिहार में चल रहे आई-सक्षम एडु-लीडर फैलोशिप के चल रहे 10वें बैच के लिए जेंडर विषय पर आधारित एक सत्र में भाग लेने के बारे में अपने विचार साझा किए हैं।

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