हर साल ना जाने कितनी लड़कियां शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। इसके पीछे की वजह अगर कोई एक हो, तो ही बताया जा सके लेकिन अगर वजहों की गिनती करने बैठूं, तो ऊंगलियां कम पड़ जाएंगी। साल 2002 में संविधान (86 संशोधन) अधिनियम शिक्षा के अधिकार के माध्यम से एक मौलिक अधिकार के रूप में पहचाना जाने लगा है। लेख 21A का सम्मिलित होना, जिसमें कहा गया है, "राज्य राज्य के रूप में इस तरीके से, विधि द्वारा, निर्धारित कर सकते में छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।" अब शिक्षा निशुल्क हो गई है, तब भी लोग अपनी बेटियों को शिक्षित नहीं करना चाहते।
सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) ने मलाला फंड के सहयोग से बिहार में एक स्टडी की, जिसमें सामने आया कि लगभग 47% बच्चों के पास ही फोन की सुविधा है, जिनमें से 31% के पास स्मार्ट फोन है। इसमें भी ज्यादातर लड़कियों को पढ़ने के लिए फोन नहीं मिला। अगर किसी घर में एक ही शख्स के पास है और पढ़ने वाले लड़के और लड़की दोनों ही हैं, तो लड़के की पढ़ाई को प्राथमिकता मिलती है। ऐसे में लड़कियों का यह सत्र एक तरह से बेकार जा रहा है। केवल इसी उदाहरण से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लड़कियों की शिक्षा में स्थिति कैसी है। इतना ही नहीं शादी, परिवार, आर्थिक एवं कई कारणों से लड़कियां पढ़ नहीं पा रही। इसी विषय पर अंजना ने अपना एक एक्सपीरियंस साझा किया है, जब वे लड़कियों के नामांकन को प्रोत्साहित करने निकली, तब उनके साथ क्या हुआ?
अंजना का अनुभव
मैं अंजना वर्मा, आज एक छोटा सा अनुभव बताने जा रही हूं। आज जब मैं फील्ड में नामांकन के लिए बच्चे के माता- पिता से बात की, तो वे नामांकन के लिए तैयार हो गए लेकिन घर परिवार ने एक जैसा रिएक्शन नहीं दिया।
जब मैं एक घर गई ताकि बच्चे का नामांकन करा सकूं तो एक बच्चे की मां ने कहा, "बच्ची घर पर नहीं है। किसी के साथ जंगल चली गई है।" हमलोगों ने पूछा, "कब तक आएगी, तो उन्होंने कहा, 2 बजे तक आ जाएगी।" हमलोगों ने उनकी इस बात पर कहा, "जब आपकी बेटी आ जाएगी, तब आप हमें कॉल कीजिएगा तो उन्होंने हामी भर दी और इसके बाद हमलोग अन्य अभिभावकों से मिलने चले गए, और वहां भी हमें संघर्ष करना पड़ा मगर बच्ची से मुलाकात नहीं हो सकी और लगभग अधिकांश घरों का यही हाल था। हमें अनेक बहाने सुनने को मिले, जैसे- बच्ची घर पर नहीं है, बाद में आइएगा आदि लेकिन एक घर की कहानी एकदम अजीब थी, जहां लड़की के नामांकन को सिरे से नकार दिया गया।"
मां ने कहा, “नहीं पढेगी बेटी”
मैं और सीमा दीदी साथ एक घर में गए, जहां नामांकन की बात करने पर लड़की की मां ने कहा, "मेरी बेटी अभी घर पर नहीं है। हमलोगों ने उनकी बेटी को बुलाने के लिए कहा क्योंकि हमें ऐसा लग रहा था कि लड़की घर पर ही है। इस पर लड़की की मां ने कहा, "अब लड़की नहीं पढ़ेगी। इसके पापा से पूछेंगे, तब नाम लिखावाएंगे। उनकी बातों से हमें विश्वास हो गया कि लड़की घर पर ही थी औऱ उन्होंने भी स्वीकार कर लिया कि लड़की घर पर ही थी।"
इसके बाद मैंने और सीमा दीदी ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन वे तैयार ही नहीं हुई फिर श्रृंखला दीदी ने भी आकर समझाया मगर कोई असर नहीं हुआ। इसके अलावा वे महिला हमें वहां से जाने के लिए बार-बार बोल रही थीं लेकिन हम वहीं अड़े रहे।
वहां एक दादी भी थी, "उन्होंने भी बच्ची का नामांकन कराने के लिए कहा लेकिन तब भी बच्ची की मां तैयार नहीं हुई। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ कि दादी एक लड़की की शिक्षा को लेकर कितनी चिंतित है लेकिन मां ना जाने क्यों इंकार रही है? इसी बीच उनकी एक बेटी कमरे से निकलकर सामने आई, जिसका नाम खुशी थी और कुछ देर बाद एक और लड़की वापस आ गई। हमने साथ मिलकर उनकी मां को बहुत समझाया और अंत में वे तैयार हुई और हम उन्हें स्कूल लेकर गए, जहां अंततः हमने चार बच्चियों का नामांकन कराया।"
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