नमस्ते साथियों,
आशा करती हूँ कि आप अच्छे होंगें। मैं आप सभी के साथ फील्ड वर्क का अनुभव साझा कर रही हूँ। साथियों मेरा नाम अमृता है और आज सभी को कल के फील्ड वर्क का अनुभव साझा कर रही हूँ। कल प्रीति (मेरे गाँव की) और आरती (जो गोविंदपुर गाँव से है) हम तीनों अपने गाँव सुशीलनगर मे ही कम्युनिटी विजिट के लिए गये थे।
लास्ट क्लस्टर मीटिंग में बात हुई ही थी कि 13 जनवरी को हम सुशीलनगर में विजिट करने जायेंगे। हमारे दो एजेंडे थे। पहला ये कि “विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ाना है और दूसरा यह कि वैसे किशोर-किशोरियों से बात करना (जागरूक करना) और उन्हें नामांकन करने के लिए समझाना जिन्होंने किसी कारणवश पढ़ायी छोड दी है”।
इसी एजेंडे को लेकर हमने बच्चो की उपस्थिति पर अभिभावकों से बात की और उन्हें प्रतिदिन विद्यालय भेजने के लिए समझाया।
साथियों, हम उन बच्चों के घर पर गए जो लगभग 10-15 दिनों से विद्यालय नहीं आ रहे थे और पढ़ने मे भी बहुत कम ध्यान देते थे। एक बच्चे के घर जाकर पता चला कि उसके मम्मी-पापा काम करने गये थे पर एक बड़ी बहन थी, मैंने उसे ही समझाया। प्रीति की कक्षा का भी एक बच्चा, पास में ही रहता था। हम उसके घर भी गए। उसकी दादी और मम्मी को समझाया।
लगभग सभी अभिभावक बोल रहे थे कि “हम तो काम करने चले जाते है। बच्चों को स्कूल जाने को बोलते हैं तो जाना नहीं चाहते”।
हम लोगो ने उन्हें उत्तर दिया कि अगर आपकी बात नहीं मानता है और आप काम करने चले जाते है तो हमें फोन करके बोल सकते है।
हमलोग खुद ही चले आएंगे और उन्हे समझा कर स्कूल ले जाने की कोशिश करेंगे। यह बात सुनकर बच्चों की माँ बहुत ही खुश हुई और बोली कि हाँ अब से कॉल कर दिया करेंगे।
फिर वो अपनी आर्थिक स्थिति के बारे बताने लगी। जिस पर हम लोगो ने संवेदना जतायी। हमने मिलकर उनको विश्वाश दिलाया कि उनका बच्चा वैसा जरूर बनेगा जो वो चाहते हैं। हम उन बच्चों पर जरूर ध्यान देंगे।
अमृता
बैच- 10, बेगूसराय
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