प्रिय साथियों,
मैं आप सभी के साथ अपनी कम्युनिटी के एक अनुभव को साझा करना चाहती हूँ। मेरी कम्युनिटी में एक रिमझिम नाम की लड़की है, जो वर्तमान में बी.ए. कर रही हैं। उसे अंग्रेजी की कक्षा के लिए पहर्रम जाना था परन्तु उसके घरवाले उसे अकेले नहीं जाने देना चाहते थे।
कारण तो मैं पहले से जानती हूँ। इस कम्युनिटी में ऐसा ही होता है, यह इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि मैं भी यहाँ से ही हूँ। यहाँ लड़की अकेले बाहर नहीं जा सकती। यदि किसी महत्वपूर्ण काम से या पढ़ने-लिखने जाना भी है तो घर के किसी सदस्य को साथ भेजते हैं। यही रीति चली आ रही है।
अपनी अंग्रेज़ी की कक्षा को लेकर रिमझिम बहुत सोच में थी। उसके परिवारजन भी उसे अकेले नहीं जाने देना चाहते थे। उसने अपनी पीड़ा मुझसे साझा की और मैंने उसकी मम्मी से बात करने का निर्णय लिया।
उसकी मम्मी को समझाते हुए मैंने कहाँ कि आंटी अगर आप इसे पढ़ाना चाहते हैं तो अकेले भेजने में क्या समस्या है?
उनकी चिंता थी कि अकेले कैसे जाएगी? कुछ हो गया तो?
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि आंटी आजकल तो बहुत सारी लड़कियाँ बाहर जाकर पढ़ती हैं। कोई मुँगेर, कोई पटना तो कोई दिल्ली जाकर पढ़ती है। आप इसे पढ़ने जाने दीजिये तभी आपका और इसके मन का भी डर निकलेगा। आगे पढ़ेगी, कुछ बनेगी, अच्छा करेगी तो आप ही का नाम रौशन होगा ना?
मैंने आंटी को दो-तीन दिन समझाया। इसके उपरांत ही रिमझिम को एक साईकिल दिलायी गयी और वो अकेले पढ़ने जाने लगी। अब उसके परिवारजन उसे अकेले बाहर जाने देते हैं। वो एग्जाम भी अकेले ही देने जाती है।
रिमझिम से बात करके पता चलता है कि “उसके अन्दर का डर निकल चुका है और वो बहुत खुश है कि वो सब काम खुद से ही कर लेती है। उसके मम्मी-पापा अब उसकी बात मानते हैं, वो कुछ भी बोलती है तो उसे सुना जाता है, उस पर विचार किया जाता है और पूरा भी किया जाता है। रिमझिम को कहीं जाने देने से रोका भी नहीं जाता”।
मुझे ख़ुशी है कि रिमझिम को फ्रीडम (freedom) मिली और उसकी Voice & Choice को सुना जा रहा है।
सपना
टीम सदस्य, मुँगेर
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