प्रिय साथियों, आप जानते ही होंगे कि i-सक्षम द्वारा बाल-उत्सव, मैत्री प्रोजेक्ट में नामंकित बच्चियों को शिक्षा से दोबारा जोड़ने के लिए शुरू किया गया। ताकि उन बच्चियों की शिक्षा में रुचि जगे और वो दोबारा स्कूल से ड्राप-आउट न हो। गतिविधि आधारित शिक्षा के नवाचारों को सीखें और साथ ही साथ इसमें उनके अभिभावकों को भी शिक्षा के लिए जागरूक करने की एक विशेष पहल शामिल है।
हमारा एक लक्ष्य यह भी है कि अभिभावक अपने बच्चे में हो रहे बदलाव को देखें और उन्हें स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करते रहें। यदि बच्चे को निरंतर स्कूल पहुँचने में कोई समस्या हो रही है तो अभिभावक हमारी फील्ड टीम से कांटेक्ट कर समस्या का समाधान कर सकते हैं।
बिहार के तीन जिलों (गया, मुंगेर व जमुई) में पिछले एक महीने में 23 बाल-उत्सव करवाने के बाद इन बच्चों में निम्न बदलाव देखें जा सकते हैं।
• स्कूल से उनका जुड़ाव बढ़ा है
• पढ़ाई में उनकी रूचि दिखने लगी है
• जो बच्चे नियमित स्कूल नहीं जा रहे थे वो प्रतिदिन स्कूल आ रहे है
• अभिभावकों द्वारा भी बच्चों को स्कूल भेजने पर ज़ोर दिया जा रहा है
• स्कूल के सभी बच्चें एडु-लीडर्स को जानने लगे। उनके स्कूल में आने का इंतजार करते हैं।
• विद्यालयों का i-सक्षम से जुड़ाव बढ़ा है।
बाल-उत्सव (जमुई, जनवरी 2024)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय सोनपै, गरसंडा एवं उत्क्रमित मध्य विद्यालय तरीदाबिल, दाबिल से बाल-उत्सव की कुछ अहम प्रतिक्रियाएँ निन्मलिखित हैं।
“बिना कॉपी कलम के भी बच्चा सीख सकता है! यह हम पहली बार देख रहे हैं”। ~अभिभावक
“मुझे तो स्कूल आने से डर लगता था क्योंकि मैं सोचती थी कि मैं क्या करुँगी स्कूल जाकर? कहीं शिक्षक कुछ सवाल न पूछने लगें? परन्तु आज बाल-उत्सव के बहाने से स्कूल में आकर अच्छा लग रहा है। यह देख पा रही हूँ कि मेरी बच्ची स्कूल में किस तरह पढाई करती है”? अब से मैं अपनी बच्ची पर और ज्यादा ध्यान दूंगी। -महिला अभिभावक
यदि इनके अभिभावकों की बात की जाए तो बच्चो को पढाने में उनकी भी सक्रीय भूमिका आवश्यक है। कभी-कभी अभिभावकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, विद्यालयी अनुभव और विद्यालय का उनके प्रति दृष्टिकोण- बच्चे को पढने में बाधा बन जाता है। बाल-उत्सव जैसे कार्यक्रम विद्यालय और समुदाय के बीच एक पुल का कार्य करता है। अतिरिक्त भार होने के कारण हम लोग पहल नहीं ले पाते हैं। i-सक्षम जैसी टीम्स का विद्यालय के साथ जुड़ना आवश्यक है। -शिक्षक
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