Wednesday, February 21, 2024

समझ ही नहीं आ रहा था कि हम कैसे रिएक्ट करें!

प्रिय साथियों, 

आप लोगों के साथ अपना कम्युनिटी विजिट का एक्सपीरियंस शेयर करना चाहती हूँ। हमारा दो महीनों का एजेंडा है कि वैसी किशोरी लड़कियाँ जो किसी वजह से स्कूल या कॉलेज नहीं जा पा रही हैं उनको स्कूल और कॉलेज से जोड़ना। 

हम लोग पहले दिन से ही इस काम में जुड़ चुके थे। सबसे पहले हम सभी ने यह सोचा कि यदि हम लोग अकेले-अकेले काम करेंगे तो फिर काम थोड़ा काम हो पाएगा। और यदि हम साथ में काम करेंगे तो काम ज्यादा होगा क्योंकि कहते हैं ना, एक से भले दो!

पिछली बार जब हम ज़ेबा के क्षेत्र में गए तो वहाँ हमें 14 लड़कियाँ वैसी मिली जो आगे पढ़ाई करना चाहती थी परन्तु किसी वजह से वह नहीं कर पायीं।

आज हम लोग संध्या के क्लस्टर में गए थे तो हमने बहुत सारी किशोरी लड़कियों से बातचीत की। सभी ने यही बताया कि हम अभी 10th में पढ़ रहे हैं, 12th में पढ़ रहे हैं। वहाँ पर जितनी भी लड़कियाँ थी सब पढ़ाई कर रही थी और लगभग दो घंटे घूमने के बाद भी हमें एक भी वैसी लड़की नहीं मिली जिसने पढ़ाई छोड़ दी हो। 

हमें समझ नहीं आ रहा था कि उस वक्त हम कैसे रिएक्ट करें!

बहुत खुशी हो रही थी कि सब पढ़ाई कर रही है। किसी को भी कोई प्रॉब्लम नहीं है। पर खुद के लिए बुरा लग रहा था कि पता नहीं एजेंडा कैसे कंप्लीट होगा? हम लोग किसी का हेल्प कर भी पाएंगे या नहीं?

फिर हम सभी एक टोले में गए, जहाँ पर बहुत सारे छोटे-छोटे बच्चे थे। जब हमने उनसे पूछा कि कोई ऐसी किशोरी लड़की है जिसने पढ़ाई छोड़ दी हो? उन्होंने बोला कि इस टोले में तो कोई ऐसी लड़की है ही नहीं। लेकिन हाँ, आंगनवाड़ी के कम से कम 20 बच्चे ऐसे हैं जो आंगनवाड़ी नहीं जाते हैं। 

फिर हम लोग उनसे बातचीत की कि आंगनवाड़ी क्यों नहीं जाते हैं? उन्होंने बताया कि आंगनवाड़ी सेविका बोलती है कि 40 बच्चे यहाँ पर हो गए हैं, इस वजह से हम और बच्चों को नहीं ले सकते हैं। 

हम लोगो ने सोचा कि अगर हम लोग किशोरी पर काम कर ही रहे हैं तो क्यों ना हम इन बच्चों के बारे में भी सोचे? तो हम लोग वहाँ की आंगनवाड़ी में गए। वहाँ की सेविका से बात की। वो भी यही बात बोल रही थी कि 40 बच्चे पूरे हो गये हैं, हम और बच्चों को नहीं ले सकते!

कुछ देर बात करने के बाद हमने सोचा कि हम यहाँ मिनी आंगनवाड़ी खोल सकते हैं। फिर हमने देखा कि वहाँ पर जगह बहुत ही छोटी थी और उसी रूम में खाना भी बनाया जाता था। खाना भी गैस पर नहीं बनाया जाता था, मिट्टी का चूल्हा था। 

हम सेविका से जानना चाह रहे थे कि हम लोग कैसे उन बच्चों को मदद कर सकते हैं? तो फिर वह बोली कि इसमें हम तो कुछ नहीं कर सकते हैं।

एक अजीब बात यह थी कि सेविका को हम पर भरोसा नहीं हो रहा था। शायद इसलिए क्योंकि वह हमें नहीं जानती थी। उन्होंने हमसे पूछा कि हमारी क्या पहचान हैं? हम कहाँ से आए हैं? हम कौन सी संस्था से हैं? वह संस्था किस क्षेत्र में काम कर रही है? 

हमें बहुत खुशी भी हो रही थी कि हम अपनी संस्था के बारे में किसी को बता रहे हैं। हम देख पा रहे थे कि उन्हें अभी भी हम पर विश्वास नहीं था। उन्होंने हमारा नंबर, हमारे एड्रेस, हमारा नाम, सब कुछ नोट किया। 

मुझे अन्दर से बहुत अच्छा महसूस हो रहा था कि हम अपनी कम्युनिटी के लिए कुछ कर पा रहे हैं। यह पहल उनके भविष्य को बदलेगी। हमने उन बच्चों के नाम की एक सूचि बनायी जो एडमिशन करवाना चाहते थे परन्तु आंगनवाड़ी ना होने की वजह से नहीं करवा पाए। उसके बाद फिर हम लोग अपने घर की ओर आ गए। 

धन्यवाद- संध्या दीदी, अंजली दीदी और ज़ेबा कि आपने मुझे अपने क्षेत्र में बुलाया, हम लोग के साथ आज पूरा टाइम बिताया। हमारे साथ कम्युनिटी गयी। आज अपने साथियों के बारे में भी हमें बहुत कुछ पता चला। 

सबसे बड़ा वाला धन्यवाद i-सक्षम संस्था को क्योंकि उन्होंने मुझ जैसी लड़कियों को जोड़ा जिससे आज हम आज अन्य लोगों की मदद कर पा रहे हैं।


सुप्रिया कुमारी
बैच- 10, बेगूसराय


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