साथियों,
आज मैं आप सभी को बैच 9 की एडू-लीडर, सलोनी के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। सलोनी का घर छपरा मेघ है।
काफी मेहनती और शांत रहने वाली सलोनी के ऊपर घर की जिम्मेदारी भी है। बचपन में ही माँ का देहांत हो जाने के बाद इनका पालन पोषण इनके पिता जी ने किया।
दीदी की पढ़ाई भी रुक गयी। दीदी ने जैसे-तैसे बारहवीं की और एडू-लीडर के रूप में i-सक्षम से जुड़ गयी। शुरूआती दौर में दीदी काफी परेशान रहती थी। बहुत से कार्यो में घर से मनाही थी। जैसे- मोबाइल नहीं रख सकते, देर शाम तक घर से बाहर नहीं रह सकते, i-सक्षम परिवार के साथ दूसरी लोकेशन पर नहीं जा सकते।
सेशन में आने के लिए मुझे हर बार सलोनी के पापा को फ़ोन करना होता था कि “आज सेशन है, सलोनी को आने दीजिए”। पिछले वर्ष जब हम सारे एडू-लीडर्स को लेकर पटना गये थे तो आने में काफी देर हो गयी थी। जिस कारण उनके पिता जी ने उन्हें लगातार दो सेशन में आने नही दिया।
मैं सलोनी को लेकर काफी चिंतित था। लेकिन मैं लगातार उनके पिता जी से बातचीत करता रहा।
एक बार की बात है, जब दीदी मीडिया वाला सेशन में आयी हुई थी और सेशन में सर्टिफिकेट दिया जा रहा था। सेशन का समय 4 बजे तक था। काफी वर्षा भी हो रही थी।
दीदी को घर पहुँचने में देर हो गयी। दीदी, 6:30 में घर पहुँच गयी थी। उसके बाद मुझे सलोनी के पापा का फ़ोन आया और उन्होंने पूछा कि इतनी देर क्यों हुई?
अब हम नही जाने देंगे, सेशन में!
सिर्फ स्कूल जाने देंगे और मुझसे काफी गुस्से में बात कर रहे थे।
मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की। लेकिन अंकल मान ही नहीं रहे थे। मैंने कहा अंकल, मैं आपसे मिलकर बात करूँगा। अगले दिन, जब मैं उनके घर गया तो अंकल बाजार गये हुए थे। मैं बाजार गया और फिर वही अंकल से बात की। उसदिन काफी देर तक बातचीत हुई, मैंने अंकल से एक प्रश्न भी पूछा। मैंने पूछा कि सलोनी को जब घर आने में देर हो भी जाती है तो आप गुस्सा क्यों हो जाते हैं? आपको तो पता है ना कि वह सेशन में आयी है, फिर भी गुस्सा क्यों करते है?
अंकल ने कहा कि "नहीं! मैं, देर शाम तक सेशन में जाने नही दूँगा।"
फिर मैंने उनसे कहा कि सलोनी को थोड़ी देर से घर आने पर इतना गुस्सा कर रहे हैं, क्या आपको हक़ है कि (कभी जरुरत पड़ने पर) आप रात के समय किसी महिला डॉक्टर को ढूंढे?
मैंने कहा कि मैं, सलोनी को अब कभी लेट नही होने देंगे। लेकिन आप भी मुझसे वादा करें कि मैं कभी भी अपने जीवन में रात होने पर महिला डॉक्टर की मदद नही लूँगा।
साथियों मेरी बातचीत बढ़ती रही। अंकल को तो बहस भी लग रही हो सकती है। मैं, उसदिन अंकल को मना नहीं पाया।अगले दिन मैंने ये सभी बातें सलोनी को बतायी।
कुछ दिन बाद सलोनी ने मुझे बताया कि मेरे पापा में काफी बदलाव दिख रहा है। अब मुझे घर जाने में देर भी हो तो सिर्फ एक बार फ़ोन कर लेते हैं।
अब मैं पापा के सामने मोबाइल देख सकती हूँ। पापा मेरी हर बात मानते हैं। अब मैं घर में कैद नही हूँ। अब पापा मुझसे बहुत प्यार करने लगे हैं। इस परिवर्तन की गवाही सलोनी सेशन में देते हुए रो पड़ी।
उस समय मैं भी काफी भावुक हो गया था।
आज सलोनी अपने जीवन में बहुत खुश है और खुद के साथ-साथ समाज में भी परिवर्तन लाने के लिए कार्य कर रही है।
(चित्र में सलोनी अपने
कक्षा के बच्चो को गतिविधि के माध्यम से लीड करते हुए)
यह लेख आलोक द्वारा लिखा गया है। आलोक, मुज्ज़फ्फरपुर ऑफिस में टीम सदस्य के रूप में कार्यरत हैं।
No comments:
Post a Comment