Wednesday, January 17, 2024

अटेंडेंस रजिस्टर पर, बच्चो का नाम चढ़ाने के लिए जद्दोजहद

 नमस्ते साथियों,

मैं अपलोग के बीच एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूँ। मैं आमस ब्लॉक के महुआंवा गांव में बच्चो का फॉलोअप करने गई थी।

एक व्यक्ति के घर गए तो पता चला कि बच्ची नानी के घर से नही आयी है। दो और घर में गए तो उनके घर में भी कोई नही था। पड़ौसी से पूछे तो पता चला कि सब भट्ठे पर चले गए हैं।

 

हमने पूछा कि कब आयेंगी, तो बोले कि शाम में आती है। एक और घर में गए तो जाना की बच्ची प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाती हैं।

 

ऐसे ही कोई धान काटने, दूसरी जगह चले गए और कुछ बच्चे थे जो विद्यालय में पढ़ने चले गए थे। फिर हम विद्यालय गए तो मैडम से मिले और जो बैच 9 की दीदी से भी मिले।

 

बच्चे को देखे तो हम बहुत खुश हुए कि आज हमसे पहले बच्चे विद्यालय में पहुँचे हुए हैं।

 

लेकिन ये सब बच्चे डेली जा रहे हैं। इन्ही बच्चो के कुछ अभिभावक मुझे बोलते भी हैं कि मेरा बच्चा प्रतिदिन विद्यालय जाता है पर इसकी अटेंडेंस नहीं लगती है। इसी कारण कभी-कभी विद्यालय भी नहीं भेजते थे।

 

हम इनके अभिभावकों को आश्वासन दिए कि “हम इनका नाम विद्यालय के रजिस्टर पर चढ़वा देंगें, आप इन्हें रोज विद्यालय भेजिए”।

जब हमने प्रधानाध्यापक से इस बारे में बात की तो उन्होंने बोला कि कुछ दिन, इन बच्चो को विद्यालय आने की आदत बनने दीजिये, फिर इनका नाम रजिस्टर में चढ़ा देंगे।

 

कभी-कभी मेरे साथ ऐसा होता था कि एक-दो दिन के अन्तराल से किसी बच्चे के घर जाते थे और पूछते थे कि आपका बच्चा, विद्यालय गया है कि नहीं?

तो अभिभावक बोलते थे कि आपको मेरा ही घर मिलता है क्या?

 

और किसी के घर क्यों नहीं जाते हो?

रोज आ जाते हो!

 

हम उन्हें उत्तर देते थे कि ऐसी बात नहीं है दीदी। सभी के घर जाते हैं।

हम आपके बच्चे का नाम खुद लिखवायें है तो पूछना हमारा फ़र्ज़ बनता है।

यह कहकर हम उनको समझाते हैं।

 

इस प्रकार महूआवा गाँव और विद्यालय में बार-बार एक ही समस्या को लेकर दिमाग खराब हो जाता था। विद्यालय जाते थे तो सर बोलते थे कि “अभिभावक को लाइये”।

अभिभावक विद्यालय जाने के लिए तैयार हो जाते थे तो प्रधानध्यापक नहीं मिलते थे।

कल भी इसी तरह से हुआ।

 

क्लास टीचर हमसे बोल रहे थे कि ये बच्चे, रोज विद्यालय नहीं आते हैं। इसलिए हम इनका नाम काट दिए थे। फिर हमने उनसे कुछ देर बात की और उन्हें मनाये कि आप इनका नाम रजिस्टर में लिखिये, ये लोग रोज़ पढने आयेंगें।

 

सर बोले कि ठीक है, आप कल आइये।

 

हमने ठान लिया था कि चाहे कुछ हो जाये, उपस्थित बच्चों का नाम, विद्यालय के रजिस्टर में चढ़वा कर ही रहेंगे।

 

हम अगले दिन फिर से महुआवा गए। बच्चो के घर में पता किया तो जाना कि बच्चे पहले से विद्यालय गए हैं। फिर हमने प्रधानाध्यापक से बात की और इन बच्चो का नाम रजिस्टर में चढ़ाने के लिए बोला।

सर ने कहा कि हम नाम चढ़ा तो देंगें, लेकिन क्या ये लोग रोज पढ़ने आयेंगें?

मैंने उन्हें उत्तर दिया कि सर ये बच्चे विद्यालय आ ही रहे हैं, आप नाम लिख देंगे तो आगे भी आयेंगे।

 

बहुत दिन प्रयास करने के बाद मैं अंजली, प्रीति और रूबी- इन तीन बच्चियों का नाम अटेंडेंस रजिस्टर में चढ़वा पायी। मन को थोड़ी शांति मिली और एक पंक्ति साझा करना चाहूंगी।

 

लहरों से डरकर, नौका पार नहीं होती।

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

 

अंजना वर्मा
गया


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