Thursday, January 18, 2024

तोत्तो-चान से दोबारा मुलाकात- पुस्तक सारांश

साथियों, इस महीने की शुरुआत में मैंने अपने लिए तोत्तो-चान किताब पढने का लक्ष्य रखा था। हमने जबसे फेलोशिप यात्रा की शुरुआत की है, तबसे ही तोत्तो-चान पढना एडू-लीडर्स के लिए एक महत्वपूर्ण अनुभव रहा है। इस बार मैंने सोचा कि फिर से इस किताब को पढूँ। तोत्तो-चान द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में जापान की कहानी है। यह एक वास्तविक आत्म कथा है। 

तोत्तो-चान एक ऐसी बच्ची है, जिसे उसकी उत्सुकता के कारण विद्यालय से निकाल दिया गया और अब वो एक नए विद्यालय तोंमोए मे दाखिल हुई। देखने में इस विद्यालय का नाम अर्धविराम के चिन्ह सा दिखता था, जिसका जापानी मतलब शरीर व मस्तिष्क का समान विकास होता है। 

अपने परिवार की इकलौती बच्ची तोत्तो-चान के माता-पिता एक बेटा चाहते थे, और तोत्तो-चान का उसका असली नाम भी तेतसूकों-चान था, जहाँ चान किसी भी लड़की के नाम से जुड़ा होता था। पर तोत्तो को तेतसूकों चान सुनने मे तोत्तो चान ही लगता था, और वो सबको अपना नाम यही बताती। 

तोत्तो-चान के विद्यालय  तोंमोए में पढने और पढाने का ढंग निराला था। कक्षाएं रेल की बोगी सी थी और हर समय के अनेकों गीत थे। जिसमें कुछ पहाड़ से कुछ समुद्र से जाते समय गाया जाने वाला गीत भी था।

सुनने मे तो यह गीत सा लगता है, पर यह बच्चों को पहाड़ और समुद्र से मिलने वाले पौष्टिक खाने की ओर ले जाता था। मुझे तो यह किताब पढ कर बहुत मजा आया। साथ ही मैं इस कहानी में छुपी एक मुख्य बात से भी खुद को जोड़ पाया जो इस बात पर जोर देती है कि बच्चों की क्षमताओं पर यकीन करना बहुत जरूरी है। 
 

इस किताब की अनेकों अंश मुझे बहुत अच्छे लगे, और मैं इसे पढते समय इनके नाम लिखता गया। विद्यालय से निकाला जाना, डिब्बे वाला विद्यालय, पढाने का तरीका, सैर... यह लिखते-लिखते लिस्ट लंबी होती गई। इनमें से एक अनुभव को वापस डालना मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया। 

कहानी कुछ ऐसी है जो हम सभी ने अनुभव की है। तोत्तो-चान का बटुआ नाले मे गिर जाता है। वो इस बटुए को ढूँढने के लिए नाले मे एक लकड़ी की मदद से सारा कचरा निकालना शुरू कर देती है। उसके पास कचरे का एक बड़ा ढेर लग जाता है। कुछ देर मे प्रिन्सपल सोशकू उधर से गुजरते हैं। अपने जीवन मे जब हम छोटे थे हमेशा बड़ों से "यह सही नहीं, वो सही" कहते सुना। 

और जब खुद बड़े हुए, खुद को भी बच्चों को "यह सही नहीं, वो सही" कहने से रोक न पाने की आदत से लड़ते पाया। पर इस विद्यालय में यही तो अलग था। 

प्रिन्सपल सोशकू ने तोत्तो-चान से यह सब नहीं कहा। उन्होंने न तोत्तो-चान को टोका, न गंदे नाले से जूझते देख डाँटा। उन्होंने सिर्फ एक बात कही "जब तुम्हारा काम खत्म हो जाएगा तो तुम वापस से यह कचरा नाले मे डाल दोगी ना!" 

यह कह वो आगे बढ गए। तोत्तो-चान को पहली बार लगा कि किसी बड़े ने उसपर इतना भरोसा किया है। उसने पूरी मेहनत से अपना बटुआ ढूंढा पर वो न मिला। अंत मे उसने जैसा वादा किया था वही किया और पूरा कचरा वापस से नाले मे डाल दिया। 

यह अनुभव बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक सीख देता है कि हमें बच्चों और उनके प्रयासों के आकलन से परे हट उनपर विश्वास दिखाना चाहिए। मैं आप सभी साथियों को भी यह किताब पढने का और तोतो-चान से जुड़ने के लिए आग्रह करता हूँ।  इसे पढ़ें और अपनी पसंद की कोई एक कहानी हमसे साझा करें।

श्रवण 
टीम सदस्य 

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