दोस्तों आज मैं, आप सभी के साथ मैत्री में लड़कियों को विद्यालय तक जोड़ने का अनुभव साझा कर रही हूँ। यह लेख रविता कुमारी (शेरघाटी ब्लॉक, जयपुर गाँव) के बारे में है।
(रविता, अपने दोस्तों और सीमा दीदी के साथ जयपुर गाँव में)
जब मैं रविता के घर गई तो रविता की माँ बोली कि आज ये नही जाएगी।
मैंने उन्हें पूछा कि क्या समस्या है दीदी?
आप इसे विद्यालय जाने के लिए क्यों मना कर रही हो?
तो उनकी माँ बोली कि उसकी ड्रेस गन्दी है, इसलिए नहीं जाएगी।
मैंने पूछा कि रविता की दूसरी ड्रेस भी होगी, न? मैं उनकी माता जी से बात कर ही रही थी कि इतनी देर में रविता, ड्रेस पहनकर स्कूल के लिए निकल गयी।
मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ और दौड़ कर मैं भी उसके साथ उसे स्कूल तक छोड़ने के लिए जाने लगी।
मैंने उससे पूछा कि तुम पहले स्कूल क्यों नहीं जाती थी? क्या कारण था?
उसने उत्तर दिया कि पहले, मेरा नामांकन नहीं हुआ था। मेरा आधार
कार्ड भी नहीं बना था, मेरे पास ड्रेस भी नहीं थी तो कैसे स्कूल जाती! माता-पिता
से पढ़ने के लिए बोलती थी तो वो कहते कि हमारे पास पैसा नहीं है, कैसे नाम
लिखवायें?
हमारे गाँव से बच्चे पढ़ने जाते थे तो हमारा भी मन होता था, पर क्या करते!
आपने बहुत अच्छा किया दीदी कि हमारा नामांकन करा दिया। हम पढ़-लिखकर पुलिस बनना चाहते हैं। पढ़ेंगे, तभी तो पुलिस बनेंगें न?
मैंने उससे पूछा कि तुम स्कूल जाती हो तो कैसा लगता है? उसने कहा, बहुत अच्छा लगता है, दीदी।
यह सुनकर मुझे स्वयं पर गर्व महसूस हुआ। मुझे लगा कि मुझे जिस कार्य
के लिए i-सक्षम ने रखा है, मैं
वो कर्तव्यनिष्ठा से कर रही हूँ।
मुझे समुदाय के लोगो को देखकर यह भी लगता है कि अभिभावकों में जागरूकता ना होने के कारण बहुत बच्चे अभी भी शिक्षा से वंचित हैं।
इसलिए हमने अपनी टीम में बात करके यह विचार बनाया कि जिन बच्चों के आवशयक डाक्यूमेंट्स नहीं बने हुए हैं, हम उन्हें बनवायें और अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक करें। हम यह कार्य कर रहे है और अभिभावकों को भी शिक्षा के प्रति संवेदनशील करने के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं।
यह लेख श्रृंखला द्वारा लिखा गया है। श्रृंखला दीदी, गया-जिला ऑफिस में i-सक्षम के साथ कार्यरत हैं।
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