Wednesday, January 17, 2024

बीड़ी बनाने के लिए पत्ते चुनती थी बच्चियाँ, अब प्रतिदिन विद्यालय आती हैं।

 मैं बांकेबार के धनहेता गाँव के नामांकन कराने के दौरान हुए अनुभवों को साझा करना चाहती हूँ।

चांदनी कुमारी, सोनी कुमारी और प्रीती कुमारी को जब बुलाने जाते थे तो उनकी माँ बोलती थी कि वो बीड़ी का पत्ता लाने के लिए जंगल गयी है।

उस गाँव में 4-5 बार प्रीति दीदी और प्रमोद भैया गए, प्रीति दीदी ने उनका फ़ोन नंबर माँगा तो पता चला कि रिचार्ज नहीं कराया हुआ है। पड़ौस की एक दीदी का नंबर माँगा और उन्हें बोला कि जिस दिन ये बच्चे घर पर रहेंगें तो हमें फ़ोन कर दीजियेगा।

उन्होंने फ़ोन किया और हम गाँव पहुँचे। जब हम चाँदनी और सोनी को लेकर विद्यालय गए तो प्रधानाध्यापक बोले कि “हम इनका एडमिशन नहीं करेंगें। ये दोनों जंगल जाती हैं, ये विद्यालय पढ़ने नहीं आयेंगीं”। हम इनका नामांकन नहीं कर सकते।

प्रीति दीदी ने सर से आग्रह किया कि सर, आप नामांकन कर लीजिये। हम लगातार फॉलो-अप करते रहेंगें।

वो नहीं माने।

कुछ देर समझाने के बाद, हमने उन्हें अपने अन्य प्रयासों के बारे बताया तो वो मान गए। नामांकन हो गया।

कुछ दिनों बाद जब प्रीति दीदी विद्यालय गयी तो उन्होंने देखा की बच्चियाँ विद्यालय नहीं आती हैं। प्रधानाद्यापक सर ने उन पर गुस्सा किया और बोला कि आपलोग कमिट (commit) कर देते हैं, पर कुछ काम नहीं करते हैं!

अगले दिन वहां आम सभा बैठी जिसमें बच्चे और अभिभावक दोनों शामिल हुए। गाँव के अन्य लोग भी शामिल थे। मीटिंग में प्रीति दीदी ने अभिभावकों से बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए कहा तो सभी लोग मान गए।

लेकिन बाद में फिर वही हाल हुआ। बच्चों के घर जाकर फिर से वही काम, प्रीति दीदी कर रही थी।

दो दिन लगातार गयी तो उन्होंने वो जगह भी देख ली जहाँ से बच्चे बीड़ी बनाने के लिए, पत्ते चुनने जाते थे- यह धनेटा पहाड़ था।

दीदी को देखकर बच्चे कभी धनेटा पहाड़ तो कभी बरहेटा पहाड़ पर भाग जाते थे।

थक-हारकर दीदी ने हमें सारी बातें बतायीं। हम लोग उनकी आर्थिक दशा भी समझ रहे थे और उनकी भावनाओं को भी। हमने एक बार और अभिभावकों से बात करने की सलाह बनायीं।

इस बार प्रीति दीदी सुबह 8 बजे ही उस गाँव में पहुंची। बच्चियाँ खाना खा रही थी। हमने अभिभावकों से बात करके बच्चों को विद्यालय के लिए तैयार किया।

विद्यालय जाते हुए बात करते समय पता चला कि “बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है। कुछ लिखना-पढ़ना भी नहीं आता है। सर डाँटते हैं तो अच्छा भी नहीं लगता है”। बच्चे क्या करें, उन्हें खुद समझ नहीं आता।

बच्चियों से यह सब सुनकर प्रीति दीदी ने कहा कि हम सर से बात करेंगें और हम स्वयं ही तुम्हें लिखना-पढ़ना सिखायेंगें।

बालगीत और गतिविधियों के माध्यम से प्रीति दीदी ने इन बच्चियों को और साथ ही अन्य बच्चो को भी पढ़ाया और सिखाया। अब ये बच्चे रोजाना विद्यालय आते हैं और जंगल नहीं जाते हैं। प्रीति दीदी से भी घुल मिल गए हैं।

श्रृंखला
गया

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