साथियों,
मैं आपलोग के साथ निशु दीदी, जो बैच 9 की एडू-लीडर हैं, का अनुभव शेयर करना चाहती हूँ। निशु दीदी में मुझे एक बड़ा बदलाव दिखा कि वो पहले अपनी बातों को सेशन में नहीं रखती थी। लेकिन अब वो अपनी बात रखती हैं।
साथ ही उनका कहना था कि वो अपनी बात घर में भी नहीं रख पाती थी।
जैसे- उन्हें क्या खरीदना है? या क्या पढना है?
निशु दीदी का कहना था कि उनकी माँ और भाई हमेशा उनपर अपनी सोच थोपते थे और उनको अपनी बात बोलते समय बोलते थे कि “तुम चुप रहो”!
इस कारण वो कुछ बोल ही नहीं पाती थी।
(निशु, बैच-9 कक्षा में बच्चो को पढ़ाते हुए)
लेकिन दीदी अब अपनी पढाई भी कर रही है और अपनी पसंद की वस्तुएँ भी खरीदती हैं। यह सब हमारे सेशन- “वौइस् एंड चॉइस” के कारण हुआ। दीदी ने जब मुझे बताया कि उनके पास रूपये रहते हैं फिर भी वह अपनी पसंद की कोई चीज नहीं खरीद सकती। तो सुनकर अच्छा महसूस नहीं हुआ।
उनको कंप्यूटर भी सीखना है, परन्तु भाई के द्वारा मना किये जाने पर वो कर भी नहीं सकती। उस समय मैंने उनसे पूछा भी था कि आपको क्या लगता है कि आपको क्या करना चाहिए?
तो दीदी ने बोला कि “मुझे, बिना भय के अपनी बात रखना चाहिए और उन्होंने रखी भी”।
आज उनका एडमिशन कंप्यूटर क्लास में हो गया है। वो अपनी माँ को समझा पायी कि आज के समय में कंप्यूटर सीखना कितना जरुरी है, बिना इसे सीखे हो सकता है कि आगे कोई जॉब ही ना मिले!
वॉइस एंड चॉइस सेशन से हो रहे छोटे-छोटे बदलावों में से यह एक बदलाब मैं आपके साथ साझा करके बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ।
यह लेख लवली दीदी, i-सक्षम मुज़फ्फरपुर ऑफिस की टीम सदस्य द्वारा लिखा गया है।
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