बिंदु और चंद्रबिंदु में अंतर और इनका प्रयोग
हिंदी भाषा
सरलतम भाषाओं में से एक है, परन्तु इसके कुछ पहलुओं को लेकर हमारे मन में दुविधा
की स्थिति बनी रहती है। ऐसी ही दुविधा का विषय है ये प्रश्न कि आखिर शब्द में कहाँ
बिंदु लगेगा और कहाँ चंद्रबिंदु? जैसे- ‘हंस’ और ‘हँस’ में बिंदु के
प्रयोग से अर्थ ही बदल गया है।
आमतौर पर
इसे बिंदु और चंद्रबिंदु कहते हैं, लेकिन
व्याकरण की भाषा में इसे अनुस्वार और अनुनासिक कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से
आज हम कुछ आसान उपायों से यह समझने की कोशिश करेंगे कि कहाँ अनुस्वार या बिंदु
का प्रयोग होता है और कहाँ अनुनासिक यानी चंद्रबिंदु का।
अनुस्वार या बिंदु
अनुस्वार
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अनुस्वार स्वर
का अनुसरण करने वाला व्यंजन। इसके उच्चारण के समय नाक का उपयोग होता है।
उच्चारण के समय वो व्यंजन वर्ण उच्चारित होता है, जो
अनुस्वार या बिंदु की तरह लिखा गया हो। अनुस्वार को समझने के लिए हमें सबसे पहले
हिंदी वर्णमाला के वर्ग को समझना होगा। हिंदी वर्णमाला के पांच वर्ग हैं और
प्रत्येक वर्ग के पांचवें वर्णों के समूह को ‘पंचमाक्षर' कहते हैं
(पञ्चमाक्षर = पञ्चम अक्षर = पाँचवाँ अक्षर)
इस प्रकार क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग
के पाँचवे वर्ण को पंचमाक्षर कहा जाता है जो क्रमशः
ङ, ञ, ण, न तथा म हैं।
·
कवर्ग के
साथ (ङ) अङ्क = अंक, अङ्ग = अंग; दिनाङ्क = दिनांक;
·
च-वर्ग के
साथ (ञ) पञ्च = पंच, झञ्झट = झंझट;
·
ट-वर्ग के
साथ (ण) घण्टा = घंटा, कण्ठ = कंठ, मण्डी = मंडी;
·
त-वर्ग के
साथ (न्) हिन्दी = हिंदी, अन्धा = अंधा, किष्किन्धा = किष्किंधा;
·
प-वर्ग के
साथ (म्) कम्पन = कंपन, अम्बा = अंबा, आरम्भ = आरंभ;
नोट-
1.
अनुस्वार के बाद आने वाला वर्ण, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग में जिस वर्ग से संबंधित होता है
अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।
जैसे- कंधा
शब्द में क के ऊपर लगा है और उसके बाद है- ध, जो कि त वर्ग में आने वाला अक्षर है। इसलिए जब हम कंधा शब्द को पंचम वर्ण के साथ लिखना
चाहें तो वहां त वर्ग के लिए पंचम वर्ण यानी ‘न’ का प्रयोग होगा और उसे
लिखा जाएगा- "कन्धा"
इसी तरह
अगर शब्द हो मंगल को अनुस्वार म के ऊपर और उसके बाद आ रहा है ग, जो कि क
वर्ग का अक्षर है, तो जब इसे
पंचम अक्षर के साथ लिखना होगा तब क वर्ग का पांचवां वर्ण यानी 'ङ' का प्रयोग होगा और उसे लिखा जाएगा 'मङ्गल'
2. यदि पंचम
वर्ण के बाद किसी दूसरे वर्ग का कोई पंचम वर्ण आए तो अनुस्वार नहीं लगेगा, बल्कि पंचम वर्ण ही लगता है।
जैसे- वाड़्मय
को वांमय, तन्मय को तंमय, उन्मुख को उंमुख नहीं लिखा जा
सकता।
3. इसी तरह
अगर कोई पंचम वर्ण किसी शब्द में तुरंत ही दोबारा आ रहा हो तो भी अनुस्वार का
प्रयोग नहीं होगा। जैसे- चम्मच को चंमच, उन्नति को उंनति, अक्षुण्ण
को अक्षुंण नहीं लिखा जा सकता।
जैसे—वाङ्मय, जन्म, निम्न, मृण्मय आदि।
4.
अनुस्वार के बाद अगर य, र,ल,व,श,ष,स,ह वर्ण आते हैं यानी कि ऐसे वर्ण जो किसी वर्ग में शामिल नही हैं तो
अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है और उसे किसी वर्ण में
नहीं बदला जाता।
जैसे- संयम,
संशय, संरक्षण, संवाद और संसार। यहां अनुस्वार के बाद य अक्षर है, जो किसी वर्ग के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहां बिंदु
ही लगेगा।
5. व्याकरण
के अनुसार यदि किसी शब्द में दो अर्द्ध-अनुनासिक लगातार आ रहे हों, तो उसमें एक के लिए बिंदु और दूसरे के लिए अर्द्धवर्ण
का उपयोग व्याकरण सम्मत नहीं है। व्याकरण कहता है कि दोनों नासिक्य को वर्ण रूप
में ही लिखेंगे, मात्रा रूप में नहीं। इसी नियम के तहत ‘संबन्ध’
या ‘सम्बंध’ लिखना अशुद्ध है, इसे या तो ‘संबंध’
लिखेंगे या ‘सम्बन्ध’। वैसे ही ‘पञ्चाङ्ग’ या ‘पंचांग’ लिखना
शुद्ध है।
दोस्तों के समूह में चर्चा योग्य:
1. क्या हां,
यहां, वहां, चांद, पांच, हूं, गांव आदि शब्द सही हैं? या हाँ, यहाँ, वहाँ,
चाँद, पाँच, हूँ, गाँव सही हैं?
2. हिन्दी वर्तनी में
सन्यासी, संन्यासी और सन्न्यासी में से कौन सा शुद्ध रूप है?
प्रियङ्का कौशिक
टीम, i-सक्षम
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