विल्सन जी ने अपनी बातचीत में हम सबसे साझा किया "मैं स्वयं उस परिवार से आता हूँ जहां मेरे पापा, माँ, भाई मैला ढोने का कार्य करते थे”।
पर वाकई यह क्या है? इसे करने वाले किस तकलीफ और भावना से गुजर रहे मुझे पता नहीं था।
मेरी माँ मुझे हमेशा बोलती थी "सबने यह काम किया है पर तुम्हें यह काम नहीं करना है।" मुझे समझ नहीं आता था मैं क्या करूँ?
क्योंकि अगर आप इस समुदाय से हैं और कुछ अलग करना चाह रहे हैं तो समाज कुछ न कुछ तरीकों से आपको वापस वही करते रहने के लिए दवाब डालेगा।
मुझे लगा मैं क्या करूँ? मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। न ही मेरे पास पैसे थे और न ही अनुभव! मैं अपने समुदाय के लिए क्या कर सकता हूँ?
मैंने अपनी शुरुआत लोगों को सुनने से किया। मैं टोले-टोले जाता और लोगों को सुनता और समझता वो क्या कह रहे हैं? क्या महसूस कर रहे हैं? किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं?"
सुनने की इस शुरुआत से विल्सन जी को मैला प्रथा की बेहतर समझ बनाने और इससे जुड़े लोग जो इनके समुदाय और परिवार से ही थे, की चुनौतियों को समझने मे मदद मिली।
वर्ष 1980 से ही सफाई कर्मचारी आंदोलन का कार्य शुरू हुआ। "मैं लोगों तक जाता और उन्हें रो-रो कर मैला ढोने से माना करता। वो बोलते "यह न करूँ तो क्या करूँ?" विल्सन जी और साथियों ने इसकी शुरुआत इस प्रथा के खिलाफ विरोध करने से की। वो जगह-जगह जाते और अधिकारियों को इस प्रथा के दुष्प्रभाव से अवगत कराते और इसे रोकने का अनुरोध करते। यहाँ विल्सन जी एक अधिकारी श्री शंकर जी की बात भी साझा करते हैं, जिन्होंने इस कार्य मे उनका बड़ा साथ दिया। इस निरंतर चलने वाले संघर्ष का यह परिणाम रहा कि वर्ष 1993 मे भारत सरकार ने मैला ढोने की प्रथा को गैर कानूनी घोषित कर दिया।
विल्सन जी यहाँ एक महत्वपूर्ण बात साझा करते हैं "सामाजिक कार्य में लगे साथियों को यह समझने की बड़ी जरूरत है कि कानून का बड़ा महत्व है। हमें यह कभी नहीं कहना चाहिए कि कानून से क्या होगा? हमेशा ध्यान रखें, कानून आपको आधार देगा जिसकी मदद से आप अपने संघर्ष को और मजबूती से रख सकते हैं।"
इन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप मे समुदाय में अपने प्रति और इस कार्य से जुड़े लोगों के प्रति अविश्वास को भी साझा किया। मैं जब समुदाय मे जाता तो लोग बोलते “आज साइकिल से आया है, कल हीरो होंडा से आएगा और फिर कार से”।
मैं कितना भी उन्हें विश्वास दिलाता पर यह अविश्वास मजबूत ही रहता। आज 40 वर्ष के बाद कुछ लोग हमें भगवान मानने लगे हैं। हमें यह ध्यान रखना है कि हम भगवान नहीं है और यह प्रश्न स्वयं से करें कि "मेरा क्या कार्य है?” बहुत महत्वपूर्ण है।
अपनी बातचीत मे विल्सन जी ने 'जाति और पितृसत्ता के प्रति एक खुली सोच और बातचीत का माहौल तैयार करते रहना एक महत्वपूर्ण कार्य बताया जिसमें सामाजिक कार्य से जुड़ी संस्थाओं का शामिल होना महत्वपूर्ण है।'
व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए यह बातचीत दिल को छूने वाली रही। मुझे लोगों को सुनते रहना और कुछ देने की लालसा से दूर उन्हें समझने की कोशिश करने की महत्वपूर्ण सीख मिली। इसके लिए मैं BDC, APF और सर्वर जी का तहे दिल से आभार देता हूँ।
श्रवण
टीम सदस्य
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