आज मैं जब कक्षा में कहानी सुना रही थी, तो बच्चे बड़े ही चाव से सुन रहे थे। लेकिन वो बार-बार ये अनुरोध भी कर रहे थे कि दीदी दिखाइये न, कैसा दिख रहा है, किताब में।
लेकिन हर एक वाक्य का मेरे पास चित्र उपलब्ध नही था। फिर मैंने बोर्ड पर कुछ चित्र बनाये जिससे कि बच्चे कहानी को और अच्छे से समझ सकें, लेकिन बच्चे फिर भी संतुष्ट नहीं थे। उन्हें कहानी का जीवंत उदाहरण चाहिए था।
मैंने सोचा कि मेरे पास पूरी कहानी की स्क्रिप्ट (script) है और बच्चे भी हैं। तो क्यों ना एक छोटा सा नाटक किया जाये?
जब मैंने बच्चो को ये बात बतायी तो वो बहुत खुश हुए, नाटक में भाग लेने और देखने के लिए बहुत उत्साहित भी दिखे। दो बच्चियाँ अपने मन से आगे आयी। (वैसे तो चार-पाँच आ गयी थी। लेकिन उन सभी में से सिर्फ दो बच्चियों को मैंने नाटक के लिए चुना।)
ये वो बच्चे थे जो किसी भी कार्य में बहुत कम पहल करते थे और कक्षा में बहुत कम सामने आते थे। मुझे ये देख कर खुशी हुई कि आज ये बच्चे स्वयं ही आगे आये हैं, इसलिए भी मैंने इन्हें नाटक के लिए चुना।
बच्चों ने इस कहानी को नाटक के रूप मे बखूबी निभाया और पूरी कक्षा को ये कहानी अच्छे से समझ आ गयी, मुझे नहीं लगता कि वो कभी भूलेंगे। क्योंकि जब अंत में मैंने सभी से प्रश्न पूछे तो सभी बच्चो ने सही-सही उत्तर दिए, वो भी एक स्वर में। ये देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। मुझे लग रहा था कि मैं आज बच्चों को ज्यादा तो नहीं सिखा पायी, लेकिन हाँ, जो भी सिखाया वो उन्हें अच्छे से समझ आ गया। इस बात की संतुष्टि थी।
मैं, बच्चों द्वारा किये गए नाटक का विडियो तो
नहीं बना पायी परन्तु अंत में एक तस्वीर जरुर ली है।
वो भी इसलिए क्योंकि बच्चे कह रहे थे कि, देखिये न
दीदी, “रौशनी एकदम सोफिया जैसी दिख रही है।" जो की सही ही था, क्योंकि सोफिया के चित्र में और रौशनी में काफी समानता थी। आप भी देखिये।
यह देख मुझे निधि पर बहुत गर्व महसूस हुआ कि वो कक्षा के नियमों (values) का पालन करती है और दूसरे बच्चों की मदद करती है।
मुस्कान
30 अक्टूबर, 2023
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